जिसे गुलाब की सुन्दरता और सुंगध आकर्षित न करे कांटे दिखें वह अधार्मिक है: वंदना श्री
जिसे गुलाब की सुन्दरता और सुंगध आकर्षित न करे कांटे दिखें वह अधार्मिक है: वंदना श्री
साध्वी नूतन प्रभा श्री जी ने कपट सहित झूठ को दोहरा पाप बताया
शिवपुरी ब्यूरो। गुण ग्राहकता धार्मिर्क व्यक्ति का लक्षण है। जो दूसरे व्यक्ति के अवगुणों को न देखकर गुणों पर दृष्टिपात करता है और उन्हें अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेता है वहीं व्यक्ति सच्चा धार्मिक है। श्रावक होने के लिए गुणग्राहकता का गुण अत्यंत आवश्यक है। उक्त प्रेरणास्पद उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी वंदना श्री जी ने कमला भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने माया मृषावाद,और मिथ्यात्व दर्शन शल्य आदि पापों का वर्णन करते हुए इनसे दूर रहने का उपदेश दिया। धर्मसभा में साध्वी जयाश्री जी ने अरिहंत सिद्ध जप ले, भव सागर से तर ले भजन का गायन किया।
धर्मसभा में साध्वी वंदना श्री जी ने श्रावक के गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि जो सबका भला चाहता है उसके खाते में लाभ जुड़ता है। आप दूसरों को जो देना चाहते हैं वहीं आपको भी उपलब्ध होता है। इसलिए कभी दूसरों का बुरा मत सोचो। हर व्यक्ति के कल्याण की कामना करो। प्रत्येक व्यक्ति में गुण देखों उसके अबगुणों पर ध्यान मत दो। उन्होंने कहा कि संसार में रहकर जो व्यक्ति हर चीज में अवगुण देखता है वहीं सबसे ज्यादा दु:खी होता है। उन्होंने कहा कि हमें गुरू भगवंतों का सानिध्य मिलता है, जिनवाणी का श्रवण करने का सौभाग्य मिलता है, लेकिन दु:ख की बात यह है कि इसके बाद भी हमारी दृष्टि गुणग्राही नहीं है। गुणग्राही व्यक्ति दूसरों के गुणों को अपने जीवन में उतारता है। हमें राजहंस के समान होना चाहिए न कि बगुले के समान। हंस के सामने दूध और पानी का मिश्रण रख दिया जाए तो वह दूध का सेवन करता है और पानी को छोड़ देता है, लेकिन बगुले की दृष्टि मछली पर होती है। उन्होंने बताया कि अबगुण देखने वाला गुलाव में भी कांटे देखता है। चंदन के पेड़ पर भी उसे सुन्दरता तथा सुगंध महसूस नहीं होती वह चंदन के पेड़ पर लिपटे बिषेंले सांपों को देखता है। धर्मसभा में साध्वी वंदना श्री जी ने आज माया मृषावाद पाप को बताते हुए कहा कि इसका अर्थ है कि कपट पूर्वक झूठ बोलना। उन्होंने कहा कि कपट और झूठ अलग-अलग पाप हैं लेकिन माया मृषावाद दोहरा पाप है और इस पाप से हमें बचना चाहिए। माया मृषावाद पाप से हमारे दूसरों से संबंध समाप्त हो जाते है और भरोसा भी टूट जाता है। भरोसा एक बार टूटा तो फिर नहीं आता। अंतिम पाप मिथ्यात्व दर्शन शल्य को बताते हुए उन्होंने कहा कि जिसे देवगुरू और धर्म में आस्था नहीं होती वह यह पाप करता है।
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